04-CGLRC - 01. राजस्व न्यायालय
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959
अध्याय 4
धारा 27: RO अपने अधिकार क्षेत्र में कहीं भी जांच या सुनवाई करेगा,
परंतु उपखंड अधिकारी पूरे जिले में कहीं भी जांच या सुनवाई करेगा।
धारा 29: (1) यदि मंडल को उचित लगेगा तो वह कोई केस किसी एक RO से लेकर उसके समान या बड़े RO को दे देगा।
(2) यदि आयुक्त को आवेदन मिलने पर उचित लगेगा तो वह कोई केस किसी एक RO से लेकर दूसरे समान या बड़े RO को दे देगा।
धारा 32: न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को हटाने के लिए RC की अंतर्निहित शक्ति को संहिता की कोई धारा कम नहीं कर सकती।
धारा 33: RO किसी व्यक्ति को पक्षकार के रूप में या साक्षी के रूप में साक्ष्य या दस्तावेज पेश करने हेतु समन/बुलावा/सूचना जारी कर सकेगा।
धारा 34: जारी समन का पालन ना होने पर RO जेल वारंट या जमानती वारंट जारी कर सकेगा या प्रतिभूति ले सकेगा या ₹1000 तक जुर्माना ले सकेगा।
धारा 35 (1) आवेदक विपक्षी को सूचना/समन हेतु शुल्क ना दे तो मामला खारिज किया जा सकेगा।
(2) सूचना समन होने पर भी पक्षकार ना आए तो उस की गैरहाजिरी में सुनवाई हो सकेगी या मामला खारिज किया जा सकेगा।
(3) उपधारा (2) के आदेश की सूचना के 30 दिन के भीतर व्यथित पक्षकार RO को शपथपत्र सहित आवेदन देगा, दूसरे पक्ष को सुनने के बाद RO उपधारा (2) के आदेश को अपास्त कर सकेगा।
(4) उपधारा (3) का आवेदन नामंजूर होने पर व्यथित पक्षकार अपील कर सकेगा।
धारा 36: RO सुनवाई को कारण व् खर्च लिखते हुए स्थगित कर सकेगा। प्रत्येक पक्ष को अधिकतम 4 स्थगन मिलेंगे, वह भी खर्चे के साथ।
धारा 42: RO द्वारा पारित किसी गलती, लोप या अनियमितता से युक्त कोई आदेश अपील या पुनरीक्षण में तब तक नहीं बदला जाएगा, जब तक इससे वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया हो।
न्याय नहीं होने पर यह भी ध्यान रखा जाएगा कि क्या आपत्ति पहले उठाई जा सकती थी या जानी चाहिए थी।
धारा 43: संहिता में स्पष्ट ना होने पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
राजस्व अधिकारियों (ROs) तथा राजस्व न्यायालयों (RCs) की प्रक्रिया
धारा 27 से धारा 43.
धारा 27: RO अपने अधिकार क्षेत्र में कहीं भी जांच या सुनवाई करेगा,
परंतु उपखंड अधिकारी पूरे जिले में कहीं भी जांच या सुनवाई करेगा।
धारा 29: (1) यदि मंडल को उचित लगेगा तो वह कोई केस किसी एक RO से लेकर उसके समान या बड़े RO को दे देगा।
(2) यदि आयुक्त को आवेदन मिलने पर उचित लगेगा तो वह कोई केस किसी एक RO से लेकर दूसरे समान या बड़े RO को दे देगा।
धारा 32: न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को हटाने के लिए RC की अंतर्निहित शक्ति को संहिता की कोई धारा कम नहीं कर सकती।
धारा 33: RO किसी व्यक्ति को पक्षकार के रूप में या साक्षी के रूप में साक्ष्य या दस्तावेज पेश करने हेतु समन/बुलावा/सूचना जारी कर सकेगा।
धारा 34: जारी समन का पालन ना होने पर RO जेल वारंट या जमानती वारंट जारी कर सकेगा या प्रतिभूति ले सकेगा या ₹1000 तक जुर्माना ले सकेगा।
धारा 35 (1) आवेदक विपक्षी को सूचना/समन हेतु शुल्क ना दे तो मामला खारिज किया जा सकेगा।
(2) सूचना समन होने पर भी पक्षकार ना आए तो उस की गैरहाजिरी में सुनवाई हो सकेगी या मामला खारिज किया जा सकेगा।
(3) उपधारा (2) के आदेश की सूचना के 30 दिन के भीतर व्यथित पक्षकार RO को शपथपत्र सहित आवेदन देगा, दूसरे पक्ष को सुनने के बाद RO उपधारा (2) के आदेश को अपास्त कर सकेगा।
(4) उपधारा (3) का आवेदन नामंजूर होने पर व्यथित पक्षकार अपील कर सकेगा।
धारा 36: RO सुनवाई को कारण व् खर्च लिखते हुए स्थगित कर सकेगा। प्रत्येक पक्ष को अधिकतम 4 स्थगन मिलेंगे, वह भी खर्चे के साथ।
धारा 42: RO द्वारा पारित किसी गलती, लोप या अनियमितता से युक्त कोई आदेश अपील या पुनरीक्षण में तब तक नहीं बदला जाएगा, जब तक इससे वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया हो।
न्याय नहीं होने पर यह भी ध्यान रखा जाएगा कि क्या आपत्ति पहले उठाई जा सकती थी या जानी चाहिए थी।
धारा 43: संहिता में स्पष्ट ना होने पर सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
धारा 36 के अनुसार कितना खर्च दिया जायेगा?
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